भारत में प्रतिबंधित एक्वेरियम मछलियां (Bharat mein kaun se machliyan gairkanooni hein?)
संभवत: आपके पास एक एक्वेरियम है और आप उसमें कुछ अलग हटकर, या विदेशी मछली प्रजातियों को रखना चाहते हैं; कुछ ऐसा जो बहुत आम नहीं है। यह सब तो ठीक है। हम सभी अपने मछली टैंकों में सुंदर मछलियों को रखना चाहते हैं।
लेकिन कुछ विदेशी मछली प्रजातियां हमारे लिए, या अन्य मछलियों के लिए खतरनाक हो सकती हैं। इतना ही नहीं, भारत में इन पर काफी हद तक प्रतिबंध लगा दिया गया है। आपको ऐसी मछलियों के बारे में जरूर पता होना चाहिए।
इस लेख में, हम इन विभिन्न मछली प्रजातियों के बारे में जानने जा रहे हैं जो भारत के कई राज्यों में प्रतिबंधित हैं। जाहिर है, आप उन्हें अपने एक्वैरियम में नहीं रख सकते हैं, नाही उन्हें तालाबों और नदियों में छोड़ सकते हैं।
- Common Pleco मछली
- थाई मंगुर मछली (अफ्रीकी कैटफ़िश)
भारत में प्रतिबंधित एक्वैरियम मछलियों की सूची
यहां कुछ मछलियों की सूची दी गई है जिन्हें विभिन्न कारणों से विभिन्न भारतीय राज्यों द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया है। कर्नाटक और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य, भारत में मछली व्यापार और मछली की खेती करने वाले राज्यों में अग्रणी हैं, और इसलिए ये राज्य विदेशी, आक्रामक, शिकारी मछलियों पर प्रतिबंध लगाने वाले पहले राज्य भी हैं (स्थानीय मछलियों और जलीय जैव विविधता की रक्षा के लिए)।
Common Pleco मछली
कॉमन प्लेको (Common Pleco, सकर कैटफ़िश, Sucker Catfish) को भारत में कई राज्यों द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया है, जैसे की कर्नाटक द्वारा।
बहुत से लोग टैंक को साफ रखने के लिए प्लीको (Pleco) फिश रखते हैं (उदाहरण के लिए फिश टैंक के तल पर पत्थरों पर शैवाल को साफ करने के लिए)। एक बच्चे के रूप में वे छोटे (2-3 इंच) होते हैं। परन्तु, वे आसानी से 1 फीट से अधिक तक बढ़ सकते हैं। कुछ मामलों में, वे 3-4 फीट तक भी बढ़ सकते हैं।
जब वे इतने बड़े आकार के हो जाते हैं, तो बहुत से लोग उन्हें तालाबों, झीलों और नदियों में छोड़ देते हैं। वहां वे दूसरी छोटी मछलियां और उनके बच्चे/अंडे खाने लगते हैं। ये सकर कैटफ़िश (Sucker Catfish) अपना भोजन मछली टैंक, या तालाब/नदी के तल से खाना चूस कर खाती हैं। वे नदी के तल या तालाब के तल पर पड़े अन्य मछलियों के अंडे खा जायेंगे और उन्हें बढ़ने नहीं देंगे।
तो, यह विदेशी शिकारी मछली (foreign predator fish) कई स्थानीय भारतीय मछलियों को खत्म कर सकती है, और उन्हें विलुप्त कर सकती है। जब वे 3-4 फीट तक बढ़ते जाते हैं, तो वे छोटे कछुए और ऐसे अन्य जलीय जानवरों को भी खाना शुरू कर सकते हैं।
कैटफ़िश की 500 से अधिक किस्में हैं। लेकिन सभी प्रतिबंधित नहीं हैं।
प्लेको (Pleco), एलीगेटर गार (Alligator Gar) और लायनफिश (Lionfish) ने कई देशों में जलीय पारिस्थितिक तंत्रों (aquatic ecosystems) को नष्ट कर दिया है, विशेष रूप से अमेरिका और कनाडा में। उन्होंने बहुत सारी स्थानीय मछली प्रजातियों, कछुओं, कीड़ों आदि को मार डाला और उन्हें विलुप्त कर दिया।
थाई मंगुर मछली (अफ्रीकी कैटफ़िश)
मंगुर मछली (Mangur fish) भी एक कैटफ़िश है। प्राकृतिक मंगुर मछलियाँ ठीक होती हैं, अर्थार्थ उनसे औरों को कोई परेशानी नहीं होती है। वे आकार में छोटे और रंग में मैले-भूरे रंग के होते हैं।
लेकिन मानव निर्मित संकर मंगूर मछलियाँ (यानी man-made hybrid Mangur fishes, थाई मंगुर मछलियाँ) एक खतरा बन गई हैं। वे बहुत तेजी से प्रजनन करते हैं और उस पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट कर देते हैं जिसमें वे रहते हैं, यानी वे स्थानीय जैव विविधता को नष्ट कर देते हैं। वे आकार में बड़े और काले रंग के होते हैं।
कॉमन प्लीको की तरह, ये संकर मंगूर मछलियाँ सभी स्थानीय मछलियों की प्रजातियों को मार देती हैं। बस कुछ मंगुर मछलियों को 100 से अधिक प्रकार की मछलियों वाले तालाब में रखें, और कुछ महीनों में आपको तालाब में केवल मंगुर मछलियाँ ही मिलेंगी। अन्य सभी मछलियां विलुप्त हो जाएंगी।
ये संकर मंगूर मछलियां मूल रूप से थाई (यानी थाईलैंड से) मानी जाती हैं, और पूरी तरह से मांसाहारी हैं (वे मानव अवशेष भी खा सकती हैं)। उन्हें इलाहाबाद और वाराणसी के पास गंगा में भी देखा गया है। इससे भारतीय वैज्ञानिकों में काफी चिंता है।
इसलिए इंडियन नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (Indian National Green Tribunal) ने इन मछलियों को खत्म करने, और देश के विभिन्न तालाबों और झीलों में इनकी खेती पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की है। हालाँकि, भारतीय मंगुर मछलियाँ भारतीय जलीय जैव विविधता का हिस्सा हैं, और इसलिए प्रतिबंधित नहीं हैं। इन्हें रखा जा सकता है और खेती की जा सकती है।
कॉमन प्लेको और मंगुर जैसी कैटफ़िश न केवल स्थानीय जलीय पारिस्थितिक तंत्र के लिए खराब हैं, वे मानव उपभोग के लिए भी अस्वस्थ हैं। इन कैटफ़िश में पारा (mercury) और अन्य धातु की उच्च मात्रा होती है। नियमित रूप से सेवन करने पर, यह मनुष्यों में हृदय रोग, मधुमेह, कैंसर, आदि का कारण बन सकती हैं।
कुछ लोग कछुए को भी अपने एक्वेरियम में रखना पसंद करते हैं। परन्तु, कुछ कछुओं को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत संरक्षित किया गया है। इन कछुओं को एक्वेरियम में पालतू जानवर के रूप में नहीं रखा जा सकता है।
भारत में कभी भी किसी भारतीय कछुए की नस्ल को पालतू जानवर के रूप में न रखें। अधिकांश स्थानीय वन्यजीव जानवरों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है - उन्हें भारत में पालतू जानवर के रूप में नहीं रखा जा सकता है, जैसे की भारतीय जंगली तोते, भारतीय कछुए, आदि।